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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

अथवा
डा. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों की भाषिक संरचना के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
अथवा
मिश्र जी के निबन्धों से उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उनके निबन्धों की भाषा शैली की सम्यक् समीक्षा कीजिए।

उत्तर-

निबन्ध हिन्दी साहित्य की एक अपेक्षतया नई विधा है किन्तु यह दुर्भाग्य ही है कि साहित्य की अन्य विधाओं जैसे कि कहानी, उपन्यास, कविता, नाटक आदि की तुलना में निबन्ध की विधा जनसाधारण के भीतर रम नहीं पायी है। इस स्थिति के अनेक कारण हो सकते हैं, तथापि इसका मूल कारण यहीं रहा है कि अधिकांश निबन्धों में सहज सम्प्रेषणीयता का अभाव रहा है। निश्चय ही प्रबुद्ध पाठकों का भी अभाव एक कारण हो सकता है किन्तु यह निर्विवाद है कि यदि निबन्धों की भाषा-शैली में महज सम्प्रेषणीयता का गुण हो तो कोई कारण नहीं है कि निबन्धों को भी कविता, उपन्यास आदि की तरह रुचि के साथ न पढ़ा जाए।

प्रायः होता यह है कि निबन्धकार पांडित्य के मोह का संचरण नहीं कर पाते और इसका स्वाभाविक परिणाम यह होता है कि निबन्ध का विषय अनावश्यक शब्द - जंजाल में फंसा रहता है। इस निबंध का स्वरूप कुछ निबन्धकार के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है। जहाँ तक मिश्रजी के निबंधों का प्रश्न है, यह निश्चित है कि उनके सारे निबंधों में उनका व्यक्तित्व बोलता दिखता है। उनके निबन्धों की एक अन्यतम विशेषता उनकी सहजता और प्रवाहमयता है। उनके किसी भी निबन्ध को पढ़कर ऐसा प्रतीत नहीं होता कि वे योजनाबद्ध रूप से सोचकर निबंध लिखने बैठ गए हों। इस सम्बन्ध में स्वयं मिश्र जी के निम्न शब्दों पर विचार करना होगा "आज जब मैं काफी लम्बे अरसे के बाद नया निबंध संग्रह लेकर उपस्थित हो रहा हूँ तब सोचता हूँ निबन्ध क्यों और किसके लिए लिखता हूँ। कभी-कभी लगता है मेरा मुँह बिरा रहे है। कभी-कभी लगता है मेरे निबंध मुझे अनदेखी अनचीन्ही गलियों में घसीटे रहे हैं, जिनमें जाते हुए डर लगता है और कभी-कभी लगता है कि निबंध लिखना मेरी लाचारी है, अपने अस्तित्व को कायम रखने का एकमात्र साधन है। इसीलिए ढेर सारे कार्यों में डूब जाता हूँ। तब भी निबन्ध के माध्यम से सांस लेने की छटपटाहट ही ऊपर ला देती है। यह सही है, बहुत कम लिख पाता हूँ क्योंकि बहुत कम मैं अपना हूँ।  सारी जिन्दगी लगता है, रहन रख दी गई है, एक घुईले घुटन सी- कुहासे के यहाँ एक बतास सन्नाटे के नीख क्रंदन के मोल। इस कुहासे को चीरने की जब-जब कोशिश करता हूँ तब-तब लगता है कुहासे के पास से आने वाली किरन मुझे ही चीरने को दौड़ी आ रही है और मैं कुहासे की एक पर्त ओढ़कर अपने बचाव की बचकानी कोशिश करता हूँ। एक औसत बुद्धिजीवी की जिन्दगी में कुहासा बन्धन भी है, बचाव भी है, क्योंकि दूसरा बचाव कोई है भी तो नहीं।"

मिश्रजी के उपर्युक्त शब्दों से यह स्पष्ट हो जाता है कि निबन्ध लेखन उनके जीवन का एक सहज अंग बन गया है। उनके निबन्ध उनकी लेखनी से स्वतः स्फूर्त होने लगते हैं, सायास रचना की तरह नहीं। कदाचित् इसी कारण उनके निबन्धों की भाषा-शैली में एक सहज सम्प्रेषणीयता स्वतः समाहित हो गयी प्रतीत होती है।

भाषा-शैली का प्रत्यक्ष सम्बन्ध निबंध के बहिरंग अर्थात् कला-पक्ष से है। यद्यपि भाषा-शैली परस्पर अभिन्न तत्व है फिर भी अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से इन दोनों तत्वों पर पृथक-पृथक विचार किया जा सकता है। भाषा के माध्यम से निबन्धकार अपने भावों और विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान करता है और अभिव्यक्ति की इस प्रणाली को ही शैली की संज्ञा दी जाती है। इस आधार पर मिश्रजी के निबन्धों की भाषा-शैली पर दो उप-शीर्षकों के अंतर्गत विचार किया जा सकता है पहला तो विद्यानिवास मिश्रजी के निबंधों की भाषा और दूसरा मिश्रजी के निबन्धों की शैली अथवा अभिव्यक्ति प्रणाली।

मिश्रजी के निबन्धों की भाषा का विश्लेषण करने पर निम्न विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं।

(क) प्रसंग गर्भत्व - मिश्रजी की भाषा में प्रसंग गर्भत्व का गुण प्रचुर मात्रा में मिलता है जिसका सहज परिणाम यह है कि उनकी भाषा में जहाँ एक ओर विशिष्ट अर्थ सौन्दर्य की सृष्टि होती है वहाँ गूढ़ भावव्यंजना के चमत्कार के दर्शन भी होते हैं। इस दृष्टि से उनके निबन्ध की निम्न पंक्तियाँ देखिए "सम्पादक जी, आप भी सोचते होगें कि भ्रमरानन्द इस तरह बूढ़ों की सी बातें क्या करने लगा कुर्सी छोड़ते ही यह गद्दी धारी क्यों बनने लगा पर क्या बतलाऊँ। जब बूढ़े यायातियों को काम और अर्थ बताने लगा हैं और वे पुरूषों को धर्म की थाती सौंपने को आकुल हैं तो फिर चारा ही क्या है भ्रमरानन्द को अपने यौवन के एवज में बुढौती लेनी ही होगी।"

(ख) व्यंग्य विनोद की प्रचुरता - अपनी अभिव्यक्ति को मार्मिकता और सजीवता प्रदान करने के उद्देश्य से मिश्रजी ने अपने निबन्धों में यत्र-तत्र व्यंग्य-विनोदपूर्ण भाषा का प्रयोग भी किया है। उदाहरण के लिए उनके एक निबन्ध की निम्न पंक्तियाँ देखिए विश्वविद्यालय का प्रशासन अब जमींदाराना ढंग से होने लगा है, उपकुलपति अब राजा और विश्वविद्यालन प्रजा के बीच मजबूत कड़ी बन गया है। वह प्रत्येक प्रश्न को वैदुषिक या मानवीय दृष्टि से न देखकर प्रशासकीय प्रतिष्ठा की दृष्टि से देखने के लिए लाचार • है ( सरकार की इज्जत का ठेका जो उसके पास है) इस जमींदारी में सन्ता की मजबूती के लिए मुसाहिबों, चरकटों और चाकरों की नई संस्था भी जरूरी हो गई है।"

(ग) प्रवाहमयता - मिश्रजी के निबन्धों की भाषा की एक अन्यतम विशेषता उनकी प्रवाहमयता है। उनकी भाषा उनके व्यकितत्व की ही तरह सहज और स्वाभाविक बन पड़ी है। एक विद्वान आलोचक के शब्दों में, "आपकी भाषा में नई चुहज गई चुस्ती, नया चुलबुजापन, नया अंदाज, नया आवेश, नया जोश है जो भाषा को प्रवाहमान बनाता हुआ अभिव्यक्ति को तरल सरल एवं रसीला बना देता है।" इस संदर्भ में मिश्रजी के एक निबंध की निम्न पंक्तियाँ देखिए-

"पहले तो यह था कि कभी संसुर तीसरे दर्जे में चलेगा तो उसका दामाद भी उसी दर्जे में चलेगा। अगर नहीं चलेगा तो वह दामाद नहीं रह पाएगा। बेटी के लिए दूसरा दामाद ढूढ़ा जाएगा। पहले बाप पहले या दूसरे दर्जे में और बेटा तीसरे दर्जे में चलने वाले बाप को बाप नहीं कहेगा। कारण यह है कि अब केवल दो दर्जे हैं: एक गद्दीदार और दूसरा काठीवाला। एक में शय्या प्रकाश, रात्रि प्रकाश और प्रकोष्ठ प्रकाश ....दूसरे में एक-सा प्रकाश या अंधकार बना रहता है, एक में सीमित प्रवेश, बेरोकटोक घुसने की अबाधता। इन दोनों के बीच जो था, वह बेचारा अब अन्तिम साँस ले रहा है। वह सामाजिक न्याय ही सहज परिणति है।"

(घ) सूक्तियों का प्रचुर प्रयोग - मिश्रजी ने अभिव्यक्ति की सजीवता एवं मार्मिकता प्रदान करने के उद्देश्य से सूक्तियों का भी प्रचुर प्रयोग किया है। उदाहरण के लिए कुछ सूक्तियाँ देखिए- "पृथ्वी पर जन्म लेकर जिसको उसके सुनहले फूलों का सौरभ नही मिला, उसका जन्म व्यर्थ हे जैसे बिना अनुभव के ज्ञान पंगु है वैसे ही बिना वाद के विवाद अर्थशून्य है, पार्थिव कल्याण परमार्थ का पहला सोपान है, परम्परा वस्तुतः कोई कालबद्ध चेतना नहीं है, राजनीति स्वतः गन्दी नहीं होती, वह जब रूंध जाती है तभी गन्दी होती है, पुरूषों में अग्र वही होता है जो सब पुरुषों के हृदय के साथ एकाकार होता है

(ङ) लाक्षणिकता - मिश्रजी ने अपने निबन्धों की भाषा में लाक्षणिकता शब्दावली का प्रयोग करके अद्रभुत अर्थ - सौन्दर्य की सृष्टि की है। इस प्रकार उनकी भाषा में गुरूता और गम्भीरता के साथ-साथ अर्थ- सौन्दर्य की नई-नई छटाएं भी देखने को मिलती है। कतिपय उदाहरण प्रस्तुत हैं।"

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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